ग़ज़िआबाद में BJP के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहरा पाना आसान नहीं, इस बार ब्राह्मण कैंडिडेट और ठाकुरो की नाराज़गी BJP के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। जहां 2019 में गाजियाबाद लोकसभा सीट पर मतदान 57.60 फीसदी रहा वही इस बार गाजियाबाद लोकसभा सीट पर 2024 में मतदान केवल 49.76 फीसदी रहा । यही वोटो का अंतर इस बार बीजेपी की गाजियाबाद लोकसभा सीट को मुश्किल में डाल सकती है, ये संकेत के चलते ये कहना उचित है की 2019 के रिजल्ट को दोहराना भाजपा के लिए मुश्किल भरा दिख रहा है।
मेरठ और बागपत सीटों पर सपा गठबंधन की स्थिति बेहतर है। बसपा अमरोहा में टक्कर दे रही है। 2019 में इन 3 में से 2 सीटें भाजपा ने जीती थीं। 2019 के चुनाव में भाजपा ने ये सभी सीटें जीती थीं।। इनमें मथुरा, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर शामिल हैं।
मथुरा में रालोद के NDA में आने से हेमा मालिनी की राह आसान हो गई है। 2014 और 2019 के चुनाव में उन्हें रालोद प्रत्याशियों से फाइट मिलती रही है। मेरठ में सपा के दलित कार्ड और बसपा के त्यागी कैंडिडेट उतारने के बाद भाजपा के अरुण गोविल का चुनाव टफ हो चुका है। बागपत में सपा और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला है। यहां हार-जीत का मार्जिन कम रहेगा।
मेरठ में चुनाव ध्रुवीकरण पर या हिंदू-मुस्लिम नहीं है। इससे भाजपा की चुनौतियां बढ़ गई हैं। भाजपा के अंदर एक खेमा है, जो नहीं चाहता कि अरुण गोविल जीते। अगर भाजपा से लोकल कैंडिडेट चुनाव लड़ता, तो स्थिति ज्यादा मजबूत होती। बाहरी प्रत्याशी मेरठ में जीतने से नई परंपरा पड़ सकती है, यही अंदरूनी पॉलिटिक्स है।
मेरठ में मुस्लिम इस बार इंडी गठबंधन के साथ है। उनकी पसंद राहुल गांधी हैं। ये एक बड़ा चेंज है। राजपूत, त्यागी भाजपा से नाराज हैं। ये डेंट भाजपा को लग सकता है। ये सीट कड़े संघर्ष में फंसी हुई है। ऐसे में यहां रामजी को राम-राम कहते हुए की स्थिति दिख रही है।’ BJP जिस सोच के साथ अरुण गोविल को मेरठ लाई, वह शायद अभी उतना बेहतर परफॉर्मेंस नहीं दिखा रहे। उसकी वजह है उनका पब्लिक से स्मूथली कनेक्ट न होना है। BJP के सामने यहां सपा से सुनीता वर्मा हैं। सुनीता मेरठ की पूर्व मेयर रह चुकी हैं। इनके पति योगेश वर्मा बसपा से विधायक रह चुके हैं। मेरठ में योगेश वर्मा के पास लंबी-चौड़ी टीम है और नेटवर्क बेहद मजबूत है।