मुजफ्फरनगर कोर्ट ने फर्जी पासपोर्ट रखने के आरोपी को 32 साल बाद सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ एक भी सबूत अदालत में पेश नहीं कर सका. हाईकोर्ट के आदेश पर सीजेएम कोर्ट ने मामले को चिह्नित करते हुए इसकी सुनवाई की.
अभियोजन पक्ष के मुताबिक तीन दशक पहले खतौली थाना पुलिस ने एक व्यक्ति को हिरासत में लिया था और उसके पास से दो पासपोर्ट बरामद किये थे. इस मामले में एसआई डीएस पंवार ने केस दर्ज कराते हुए बताया था कि 7 मई 1992 को वह पुलिस कर्मियों के साथ गश्त पर थे। तभी मुखबिर से सूचना मिली कि एक व्यक्ति फर्जी पासपोर्ट रिन्यू कराने के लिए बरेली पासपोर्ट कार्यालय जा रहा है।
पुलिस ने घेराबंदी कर इस मामले में आरोपी नूरशाहन को रोडवेज बस स्टैंड के पास से पकड़ लिया. जिसके चलते दो पासपोर्ट जमशेद पुत्र जान मोहम्मद निवासी मोहल्ला खेल कांधला के नाम और दूसरा शरीफ अहमद पुत्र राशिद निवासी सलेमपुर गढ़ी, मुरादाबाद के नाम पर था।
नूरहसन ने बताया कि दोनों पासपोर्ट जमशेद के हैं, जो वह उसे देने जा रहा था। पुलिस ने इस मामले में धोखाधड़ी और अन्य आरोपों में केस दर्ज किया है. जमशेद कोर्ट में पेश हुए और उन्हें जमानत मिल गई. बचाव पक्ष के अधिवक्ता सुरेंद्र कुमार ने बताया कि इस मामले में अभियोजन पक्ष तीन दशक बाद भी कोर्ट में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका.
इस मामले की सुनवाई सीजेएम आकांक्षा गर्ग की अदालत में हुई. कोर्ट ने 26 फरवरी 2024 को सबूत पेश करने का आखिरी मौका दिया था और 11 मार्च को इस मामले में गवाही देने को कहा था. लेकिन अभियोजन पक्ष साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने साक्ष्य के अभाव में आरोपी जमशेद को बरी कर दिया. बताया कि अदालत ने सहअभियुक्त नूरहसन को 29 मार्च 1997 को ही बरी कर दिया था।